Friday, June 5, 2015

क्‍योंकि‍ देश में गंगा बहती है


    चेहरे पे सफाई रहती है, दिल में गंदगी रहती है
    मुखौटा लगा घूमा करते हैं, सच्‍चाई से मुंह मोड़ा करते हैं
    बद से बदनाम हो, उससे हम डरा नहीं करते हैं ...
    हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है।

    भ्रष्‍टाचार जो होता है, वह हमें जान से प्‍यारा होता है
    ज्‍यादा लालच हम करते हैं, थोड़े में अब गुजारा नहीं होता है
    कन्‍या की भ्रूण हत्‍या भी हम कोख में किया करते हैं।
    हम उस देश के वासी हैं ……
    कुछ जो कम जानते हैं, वे मालिक यहां बन जाते हैं
    हैं पूरब वाले जान की कीमत हम कम जानते हैं
    फूट डालो, राज करो पर यहां रहनुमा ज्‍यादा जोर देते हैं ।
    हम उस देश के वासी हैं ……
    अपनी भाषा छोड़कर गैरों की भाषा अपनाया करते हैं
    मतलब के लिए हम गधे को भी बाप बनाया करते हैं
    हम क्‍या दुनिया कहती है, रुपए की कीमत गिरा डालर को बढ़ाते हैं
    हम उस देश के वासी हैं ……
    राजकाज में मिलीभगत को हम रोज सींचा करते हैं
    भ्रष्‍टाचार को नित अमरबेल की तरह बढ़ाया करते हैं
    पाखण्‍ड के परवान पर खुद को चढ़ाया करते हैं
    हम उस देश के वासी हैं ……
    गंगा को पूजा सदियों से, अब वह भी यहां रोया करती है
    दूषित कर उसका मान भी हम घटाया करते हैं
    परमार्थ को भी रौंदा करते हैं, मौका पाकर हम डसा भी करते हैं
    हम उस देश के वासी हैं ……
    इंसाफ में विश्‍वास नहीं, अब हम भेदभाव का मंत्र जपा करते हैं
    जुगाड़बाजी से घोटालों को खूब अंजाम दिया करते हैं
    ऐसा करके भारतमाता की इज्‍जत खुद घटाया करते हैं
    हम उस देश के वासी हैं ……

आओ नमन करें।

    आओ नमन करें।
    भारत मां पर कुर्बानी का इतिहास भरा है
    जो मां भारती के वीरों से टकराया, वो जीते जी मरा है
    वीर सावरकर जैसे बलिदानी से काल-कोठरी भी सजी है
    फांसी के फंदे पर झूले ऐसे वीरों की अनेक गाथाएं हमने सुनी हैं...
    आओ मिलकर ऐसी धरती मां को नमन करें।

    रानी झांसी, दुर्गा भाभी जैसी वीरांगनां भी यहां पली थी
    मंगल पाण्डेय की गोली से पहली क्रांति की लौ जगी थी
    धरती कांपी, आसमान कांपा भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान से
    अंग्रेजों की सत्ता थर्राई थी, ऐसे वीरों के नामों से
    आओ मिलकर ऐसी धरती मां को नमन करें।
    महाराणा प्रताप, टीपू सुल्तान की तलवार ने ललकारा था
    छक्के छूटे अंग्रेजों के ऐसा जज्बा दिल में बसाया था
    श्यामाप्रसाद मुखर्जी का बलिदान भी हम न भूलें
    आज तिलक, गोखले, नेताजी की वीरगाथा को प्रणाम कर लें
    आओ मिलकर ऐसी धरती मां को नमन करें।
    जलियांवाला बाग याद दिलाता है एक विदारक कहानी को
    दन-दन गोलियां खाते मां भारती के शूरवीर-सेनानी को
    गोलियों से भूने गए सैकड़ों निहत्थे बच्चे-बूढ़े-जवानों को
    मरने वाले याद कर रहे थे इंकलाब-जयहिंद की शान को
    आओ मिलकर ऐसी धरती मां को नमन करें।
    फिर गांधी की शांति-अहिंसा की दुधारी तलवार से हुए प्रहार
    अंग्रेजों की ‘फूट डालो, राज करो’ की नीति की हुई थी हार
    धन्य हुई धरती उधम सिंह जैसी त्यागी-बलिदानी से
    क्रांति का आगाज हुआ था ऐसे शूरवीर-मर्दानों से
    आओ मिलकर ऐसी धरती मां को नमन करें।
    आओ मिलकर हम भी मां-भारती के वीर-सपूत कहलाएं
    आज ऐसी लौ जगाने की सबकी बारी आई है
    जो शहीद हुए हैं जरा याद करें उनकी कुर्बानी
    संभाल कर रखें हम शहीदों की ये अमर निषानी
    आओ मिलकर ऐसी धरती मां को नमन करें।
    वंदन है, अभिनंदन है, आप मेरे सिर का चंदन हैं। जयहिंद।

कहां गए वो लोग

कहां गए वो लोग
इंसान इंसान पर मरता था
गौरव का इतिहास उसमें बसता था
जिंदगी बंदगी के लिए रोती थी
राहें बताएं कहां गए वो लोग।
ज्ञान-ध्यान-विज्ञान को जो रचते थे
शून्य का भान कराने वाले भी यहां बसते थे
वेदव्यास-वाल्मीकि जैसे भावी कह गए
काल के कपाल में सब समाए गए
राहें बताएं कहां गए वो लोग।
गंगा को लाने वाले भगीरथ से तपस्वी थे
धन्वंतरी जैसे आयुर्वेद षिरोमणि भी यहां थे
हकीकत राय-तेग बहादुर जैसे बलिदानी गए कहां
आजाद जैसे गोली खाने वाले अमर हुए यहां
राहें बताएं कहां गए वो लोग।
महाराणा प्रताप और षिवाजी जैसे शूरवीर
भगत सिंह जैसे बलिदानी कर्मवीर
मंगल पाण्डेय सरीखे धर्मवीर
पृथ्वीराज चैहान जैसे रणवीर
राहें बताएं कहां गए वो लोग।
महाराणा रणजीत जैसे योद्धा
तात्यां टोपे जैसे धीर-गंभीर
झांसी की रानी जैसी मर्दानी
नेताजी जैसे हिंद के सेनानी
राहें बताएं कहां गए वो लोग
गांधी थे सत्य-षांति-अहिंसा के पुजारी
धर्म-कर्म की लौ जगाने वाले मीरा-तुलसीदास
सूरदास जैसे बिन आंखों देखी लीला कह गए
सत्य के लिए मर-मिटे हरीष्चंद्र
राहें बताएं कहां गए वो लोग
राम-रहीम की ये पावन धरती
आज रोती-बिलखती-चिल्लाती है
कदाचार के कहर से जगाती है
बताआंे कन्या कोख में क्यू मरती है
राहें बताएं कहां गए वो लोग।

Saturday, October 22, 2011

पत्नी के देहांत पर आयोजित शोकसभा में उद्गार (१९ अक्तूबर, २०११)

"हमारे गुरु मास्टर हरपाल जी को प्रणाम. जीवन-संगिनी की मौत से ज्यादा इस उम्र में कोई चोट नहीं हो सकती. मैं ज्वार-भाटा के बीच फंसा हुआ अपने मन के भावों और घावों को चाह कर भी आज इस घडी में रोक नहीं पा रहा हूँ. आपके स्नेह और आशीर्वाद ने जो जोत जगाई है, उसके लिए मेरे उद्गार अच्छे लगें तो मेरा दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जायेगा.आध-अधूरा पढ़-लिख, गाँव की इस माटी का सौरभ पाया,अरमानों भी खूब हुआ,वैर-विरोध कर, जीवन की जोत जलाई है,पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.जीवन में लगा धर्मदेवी का संग, गृहस्थी आबाद हुई,दो बच्चों का पाया संग, बचपन में मां को खोयापिता का साया साथ हुआ,पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.विघ्न-बाधाओं की जंग में त्याग-तपस्या हुई भंग,अपनों के बीच व्यथा का चेहरा सजाया है, भरा नहीं घावों से, भावों का भी आभाव हुआ,पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.खूब मिली प्रतिष्ठा जग में,अंधी हुई उसके आगे संसारी माया,बड़े-बड़े लोगों का स्नेह पाया, संभल न उसको मैं पायापैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.अपनों के मन में खूब उतरा, परायों में अपनापन पाया,गति हुई इतनी कि मजबूती से चल न पाया,हेराफेरी को अपना दुश्मन खूब बनाया,पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.सुख-दुःख कि इस मतलबी दुनिया में,जीवन तपता है, अस्थि जलती है,अपनों के बीच परायों को मीत पायापैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.मेरे मन की अनकही व्यथा बहुतों ने नहीं समझी,क्यूंकि संसार में परमार्थी कम, स्वार्थी ज्यादा,खुदगर्जी में चलती है संसारी मर्जी,उधो तेरा भी जीवन साकार नहीं हुआ; पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ।(गंगा जीवन से लेखा मृत्यु तक साथ है, पेश है गंगा जी को)गंगा तू इतनी पवन है, हिंद यही जयहिंद यही; देश-समाज का कुछ ख्याल करो, मिसाल नहीं तो मशाल बनो; के राजेंद्र 'बेबस', कुछ ऐसा कर जाओ जगत में, मरकर भी अमर कहाओ,पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.मेरा वंदन, आपका अभिनन्दन, मानो-न-मानो आप मेरे सर का चन्दन. आपके प्रति धन्यवाद बहुत छोटा है। मैं आप सबका कर्जदार हूँ. जयहिंद.

पत्नी के देहांत पर आयोजित शोकसभा में उद्गार

"हमारे गुरु मास्टर हरपाल जी को प्रणाम. जीवन-संगिनी की मौत से ज्यादा इस उम्र में कोई चोट नहीं हो सकती. मैं ज्वार-भाटा के बीच फंसा हुआ अपने मन के भावों और घावों को चाह कर भी आज इस घडी में रोक नहीं पा रहा हूँ. आपके स्नेह और आशीर्वाद ने जो जोत जगाई है, उसके लिए मेरे उद्गार अच्छे लगें तो मेरा दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जायेगा.आध-अधूरा पढ़-लिख, गाँव की इस माटी का सौरभ पाया,अरमानों भी खूब हुआ,वैर-विरोध कर, जीवन की जोत जलाई है,पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.जीवन में लगा धर्मदेवी का संग, गृहस्थी आबाद हुई,दो बच्चों का पाया संग, बचपन में मां को खोयापिता का साया साथ हुआ,पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.विघ्न-बाधाओं की जंग में त्याग-तपस्या हुई भंग,अपनों के बीच व्यथा का चेहरा सजाया है, भरा नहीं घावों से, भावों का भी आभाव हुआ,पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.खूब मिली प्रतिष्ठा जग में,अंधी हुई उसके आगे संसारी माया,बड़े-बड़े लोगों का स्नेह पाया, संभल न उसको मैं पायापैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.अपनों के मन में खूब उतरा, परायों में अपनापन पाया,गति हुई इतनी कि मजबूती से चल न पाया,हेराफेरी को अपना दुश्मन खूब बनाया,पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.सुख-दुःख कि इस मतलबी दुनिया में,जीवन तपता है, अस्थि जलती है,अपनों के बीच परायों को मीत पायापैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.मेरे मन की अनकही व्यथा बहुतों ने नहीं समझी,क्यूंकि संसार में परमार्थी कम, स्वार्थी ज्यादा,खुदगर्जी में चलती है संसारी मर्जी,उधो तेरा भी जीवन साकार नहीं हुआ; पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ।(गंगा जीवन से लेखा मृत्यु तक साथ है, पेश है गंगा जी को)गंगा तू इतनी पवन है, हिंद यही जयहिंद यही; देश-समाज का कुछ ख्याल करो, मिसाल नहीं तो मशाल बनो; के राजेंद्र 'बेबस', कुछ ऐसा कर जाओ जगत में, मरकर भी अमर कहाओ,पैदा हुए नपैद, ऐसा पुरखों से सुनता आया हूँ.मेरा वंदन, आपका अभिनन्दन, मानो-न-मानो आप मेरे सर का चन्दन. आपके प्रति धन्यवाद बहुत छोटा है। मैं आप सबका कर्जदार हूँ. जयहिंद.